अपराध (जुर्म)छत्तीसगढ़

हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए कहा “सिर्फ नोट मिलना रिश्वत का सबूत नहीं, मर्जी से रिश्वत लेना साबित करना जरूरी”

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भ्रष्टाचार के मामलों में एक ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण व्यवस्था दी है। चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि सिर्फ रिश्वत के नोट बरामद हो जाना किसी को दोषी साबित करने के लिए काफी नहीं है। अभियोजन पक्ष को यह भी साबित करना होगा कि आरोपी ने अपनी मर्जी से रिश्वत की मांग की और उसे स्वीकार किया। इस अहम टिप्पणी के साथ, हाईकोर्ट ने गरियाबंद के आदिम जाति कल्याण विभाग के एक कर्मचारी को बरी कर दिया, जिसे ACB ने 8,000 रुपये की रिश्वत लेते हुए पकड़ा था और निचली अदालत ने उसे दो साल की सजा सुनाई थी।

यह मामला 2013 का है, जब गरियाबंद के मदनपुर शासकीय प्राथमिक शाला में पदस्थ शिक्षक बैजनाथ नेताम ने ACB में शिकायत दर्ज कराई थी।शिकायत पर ACB ने ट्रैप टीम बनाई। 1 फरवरी 2013 को आरोपी लवन सिंह को 8,000 रुपये लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया। हाथ धुलवाने पर रंग गुलाबी निकला और ACB ने विशेष कोर्ट में चार्जशीट पेश की थी, ACB कोर्ट ने आरोपी को दोषी पाते हुए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दो साल की सजा सुनाई थी।

जब मामला हाईकोर्ट में अपील में पहुंचा, तो बचाव पक्ष ने केस का एक दूसरा और चौंकाने वाला पहलू सामने रखते हुए कहा कि आरोपी कर्मचारी (लवन सिंह) ने पहले शिकायतकर्ता शिक्षक (बैजनाथ नेताम) के खिलाफ एक जांच रिपोर्ट दी थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि शिक्षक ने गैरहाजिर छात्रों को उपस्थित बताकर 50,700 रुपए की छात्रवृत्ति हड़प ली थी। इस पर उसे नोटिस भी जारी हुआ था। साथ ही यह भी बताया गया कि आरोपी कर्मचारी को स्कॉलरशिप स्वीकृत करने का अधिकार ही नहीं था; यह काम विकासखंड शिक्षा अधिकारी का था।

इन तथ्यों पर गौर करने के बाद हाईकोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष अपना केस संदेह से परे साबित नहीं कर सका। कोर्ट ने माना कि यह मामला पुरानी दुश्मनी और झूठे केस में फंसाने का भी हो सकता है। रिकॉर्ड की गई बातचीत में रिश्वत मांगने की बात स्पष्ट नहीं थी। सबसे महत्वपूर्ण बात, कोर्ट ने कहा कि सिर्फ पैसे की बरामदगी भ्रष्टाचार का ठोस सबूत नहीं है। यह साबित करना अनिवार्य है कि रिश्वत की मांग की गई थी और उसे स्वेच्छा से स्वीकार किया गया। इन आधारों पर हाईकोर्ट ने आरोपी लवन सिंह चुरेंद्र को “संदेह का लाभ” देते हुए बरी कर दिया और निचली अदालत के फैसले को पलट दिया।

Shahin Khan

Editor, acn24x7.com

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