ट्रेड यूनियनों द्वारा 9 जुलाई को किया गया देशव्यापी आम हड़ताल का ऐलान
23 मांगों को लेकर सड़कों पर उतरेंगे 20 करोड़ मजदूर-किसान

रायपुर। देशभर के ट्रेड यूनियनों द्वारा 9 जुलाई 2025 को देशव्यापी आम हड़ताल किया जाएगा। इसमें 20 करोड़ से अधिक मजदूर, किसान और कर्मचारी भाग लेंगे। यह हड़ताल केंद्र सरकार द्वारा लाए गए चार श्रम संहिताओं (लेबर कोड) को रद्द करने की मांग के साथ-साथ 23 सूत्रीय मांगों को लेकर की जा रही है। छत्तीसगढ़ में इस आंदोलन को सफल बनाने की जिम्मेदारी संयुक्त ट्रेड यूनियन मंच के संयोजक धर्मराज महापात्र और अन्य संगठनों ने संभाली है।
धर्मराज महापात्र ने शनिवार को रायपुर में इस देशव्यापी आम हड़ताल को लेकर आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि सन् 1886 में शिकागो शहर में 8 घंटे काम की मांग को लेकर मजदूरों का आंदोलन हुआ था, जिसमें मजदूरों पर पुलिस द्वारा दमन किया गया। परिणामस्वरूप कई मजदूर शहीद हो गए। तभी से हम उन शहीदों की याद में 1 मई को मई दिवस, याने अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाते आ रहे हैं। परिणामस्वरूप काम के घंटे आठ किए गए। इसी तरह हमारे पूर्वजों द्वारा संघर्ष, कुर्बानी के बाद अंग्रेजी राज से लेकर आज तक हम 44 श्रम कानून हासिल किए थे। आज की भाजपा की केंद्र सरकार इसे ही पलटने पर आमादा है।
उन्होंने आगे कहा कि भाजपा की केंद्र सरकार ने कोरोना महामारी के दौरान, जब देश की जनता जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रही थी, मजदूरों के 44 श्रम कानूनों में से 29 प्रभावशाली कानूनों को खत्म कर चार नए लेबर कोड (श्रम संहिता) बनाए। इन चार नए श्रम संहिताओं के लागू होने पर मजदूरों ने अपने संघर्षों और बलिदानों से जो श्रम कानून हासिल किए थे, भाजपा सरकार ने उन्हें खत्म कर दिया। सरकार ने यूनियन बनाना, पंजीकरण करवाना लगभग असंभव कर दिया और अगर यूनियन बन भी गई तो सरकार उसे कभी भी खत्म कर सकती है। धरना, प्रदर्शन और हड़ताल करने पर भारतीय न्याय संहिता (IPC) की धारा 111 के तहत जेल और जुर्माने का प्रावधान किया गया है। स्थायी रोजगार की जगह, बीजेपी सरकार निश्चित अवधि, प्रशिक्षु, आउटसोर्स और हर काम का ठेकाकरण – नया फरमान ले आई है। स्थायी नौकरी न होने पर मजदूर अपने अधिकार के लिए लामबंद नहीं हो सकेंगे और ग्रेच्युटी व अन्य लाभों से वंचित हो जाएंगे। बिना नोटिस के मजदूरों को नौकरी से निकाला जा सकता है। कारखाने में 40 से कम मजदूर होने पर न्यूनतम वेतन, ई.पी.एफ. व अन्य श्रम कानून लागू नहीं होंगे। महिलाओं को कारखानों में रात की पाली में भी काम में लगने की अनुमति होगी, जो पहले नहीं था। कारखानों में मजदूरों के लिए काम के घंटे 8 से बढ़ाकर 12 घंटे कर दिए गए हैं। भाजपा के मित्र उद्योगपति तो दिन में 15 घंटे काम की न केवल वकालत कर रहे हैं बल्कि उसे औचित्यपूर्ण बताकर ऐसा प्रावधान करने की मांग उठा रहे हैं, याने मजदूर अपनी पूरी देह गलाकर केवल उनके लिए मुनाफे पैदा करे – यह उनकी सोच है। ई.पी.एफ. का अंशदान पहले 12% था, अब घटाकर 10% कर दिया जा रहा है, जिससे मजदूरों को मासिक 4% का नुकसान होगा।
धर्मराज महापात्र ने आगे कहा कि भाजपा की केंद्र सरकार द्वारा लगातार मनरेगा बजट में कटौती की जा रही है, जिसके कारण मजदूरों को 100 दिन का काम नहीं मिल रहा। मनरेगा में रोजगार न मिलने से कल्याण बोर्ड में पंजीकृत मजदूरों का नवीनीकरण नहीं हो रहा और उन्हें शादी, मृत्यु पर आर्थिक सहायता आदि के लाभ से वंचित होना पड़ रहा है। भाजपा की सरकार आंगनबाड़ी, मिड डे मील, आशा वर्कर के बजट में लगातार कटौती कर रही है। इन कार्मिकों को समय पर मानदेय नहीं मिल रहा और सरकार निजीकरण करने की ओर बढ़ रही है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला होने पर भी आंगनबाड़ी कार्यकर्त्री/सेविकाओं को सेवानिवृत्त होने पर ग्रेच्युटी नहीं दी जा रही है।
धर्मराज महापात्र ने कहा कि केंद्र की भाजपा सरकार बिजली बोर्ड, बीमा, बैंक, बंदरगाहों, राष्ट्रीय राजमार्गों, आयुध निर्माणियों, एफआरआई, रेलवे आदि का निजीकरण कर रही है और अपने चहेते उद्योगपतियों – अडानी, अंबानी, टाटा, बिड़ला और कुछ अन्य उद्योगपतियों को देश की संपदा कौड़ियों के भाव बेच रही है। स्मार्ट मीटर लगाने का कार्य सरकार ने प्राइवेट कंपनी को दे रखा है। स्मार्ट मीटर के रूप में 10,000 रुपए के करीब बिजली उपभोक्ता से वसूले जाएंगे।
धर्मराज महापात्र ने कहा कि सरकार अंधाधुंध तरीके से एक ओर मजदूरों को गुलाम बनाने का रास्ता सुगम कर रही है और दूसरी ओर देश की सार्वजनिक संपत्ति विनिवेशीकरण, निजीकरण के जरिए बड़े निजी पूंजीपतियों के हाथों सौंप रही है। जब श्रमिक वर्ग इन नीतियों का विरोध कर रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, पेंशन के बुनियादी अधिकार, न्यूनतम वेतन, समान काम–समान वेतन की मांग पर आवाज उठाता है, तो उन्हें कभी देशद्रोही करार देकर और नफरती साम्प्रदायिक विभाजन के नारों की आड़ में षड्यंत्र कर उनकी एकता को ही खंडित करने का कुचक्र रचा जाता है। इसलिए भारत सरकार द्वारा बनाए गए चार लेबर कोड को रद्द करने की मांग के साथ देश के हर हिस्से के कामकाजी मजदूर, कर्मचारी यानी श्रमजीवी वर्ग ने इसका तीव्र विरोध करने के साथ-साथ विभाजनकारी राजनीति का भी विरोध करने के लिए कमर कस ली है और इन नीतियों को वापस लेने की मांग को लेकर 9 जुलाई को एक दिन की देशव्यापी हड़ताल का फैसला लिया है।